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अरब पति बनने के 10 रूल

 अरब पति बनने के 10 रूल  

1. सुबह जल्दी उठो 

एप्पल कंपनी के सीईओ टिम कुक सुबह पौने चार बजे उठते हैं. फिएट कंपनी के सीईओ सर्जियो मार्शियोन सुबह 3.30 बजे और मशहूर ब्रिटिश कारोबारी रिचर्ड ब्रैनसन सुबह पौने छह बजे उठ जाते हैं.

ज़ाहिर है ये लोग बहुत कामयाब हैं. तो, क्या इनकी कामयाबी का राज़ सुबह उठने में छुपा है

2. धैर्य रखो 

बहुत से ऐसे कार्य होते हैं जिन्हें पूरा होने में काफी समय लगता है, ऐसे में यदि उस कार्य को करने वाले व्यक्ति में धैर्य (Patience) नहीं है तो या तो वह उस कार्य को बीच में ही छोड़ देगा या फिर कार्य को जल्दी पूरा करने की कोशिश करेगा और काम को आधा अधूरा ही पूरा कर सकेगा।

3. हमेशा सीखते रहो 

क बार गाँव के दो लोगों ने शहर जाकर पैसा कमाने का फैसला किया। कुछ महीने शहर जाने के बाद इधर-उधर छोटा-मोटा काम करते हुए दोनों ने कुछ पैसे जमा कर दिए। फिर उस पैसे से अपना खुद का व्यवसाय शुरू किया। दोनों का धंधा चलता रहा। दो साल के अंदर दोनों ने काफी तरक्की कर ली।

धंधे को फलता-फूलता देख पहले व्यक्ति ने सोचा कि अब मेरा काम हो गया। अब मैं उन्नति की सीढ़ियाँ चढ़ता चला जाऊँगा। लेकिन उनकी सोच के विपरीत, उस वर्ष व्यापार में उतार-चढ़ाव के कारण उन्हें भारी नुकसान हुआ।

4. फालतू लोगो से दूर रहो 

इंसान की आदतें और उनके औरों की प्रति बर्ताव और उनकी सोच यही सब चीज़ें इंसान को अच्छा या बुरा बनाती है| हम सब तरह के लोगो से घिरे हुए है फिर चाहे वो लोग अच्छे हो या बुरे और ये हमे तय करना है की हमे किसके साथ रहना है अच्छे लोगो के साथ या फिर बुरे लोगो के साथ?

सबसे ज़रूरी तो ये बात है की हमे बुरे लोगो की पहचान होनी चाहिए नहीं तो जिन्हें आप अच्छा समझते है बाद में जाकर वही लोग आपके साथ कुछ बुरा करते है या आपको धोखा देते है|

5. दिखावा ना करो 

जब हम सफल होते है एक लेवल हासिल करते हैं, तब हम अपने आप पर बहुत गर्व होता है और यह स्वाभाविक भी है। गर्व करने से हमे स्वाभिमानी होने का एहसास होता है लेकिन  एक सीमा के बाद ये अहंकार का रूप ले लेता है और आप स्वाभिमानी से अभिमानी बन जाते हैं और अभिमानी बनते ही आप दुसरो के सामने दिखावा करने लगते हैं, और जो लोग ऐसा करते हैं वो उसी लेवल पर या उससे भी निचे आ जाते हैं |

6. कम  बोलो 

एक छोटी-सी बच्ची थी - आँचल। आँचल बहुत प्यारी थी।

उसे चित्र बनाना बहुत अच्छा लगता था। सभी उसकी चित्रकला की प्रशंसा करते थे।

पढ़ने में भी वह बहुत तेज थी। अपने सभी काम खुद करती थी।

यहाँ तक कि रोज जब माँ दूध का गिलास उसे देती थी तो वह गट-गट पी जाती थी।

खूब सब्जियाँ खाती थी और माँ का कहना मानती थी। लेकिन वह बोलती बहुत थी और उसकी इस बात से माँ अक्सर परेशान हो जाती थी।

एक बार माँ ने उससे कहा कि आँचल 'म' अक्षर से शुरू होने वाले तीन शब्द लिखो और उनके चित्र बनाओ। आँचल ने तीन शब्द लिखे -

'म' से मेढक

'म' से मुर्गा

'म' से माँ

वह माँ के पास आई और उन्हें चित्र दिखाए। माँ ने उससे पूछा

आँचल बेटा, तुम्हें इस तीनों में से सबसे अच्छा कौन लगता है ?

'माँ।' आँचल बोली।

माँ मुस्कुराईं और बोली, उसके बाद।

उसके बाद मुर्गा और फिर मेढक। आँचल बोली।

अच्छा अब ये बताओ कि ऐसा क्यों है ? माँ ने आगे पूछा।

आँचल ने उत्तर दिया, वह इसलिए की सभी की सबसे प्यारी होती है, क्योंकि वह बहुत प्यार करती है, बिलकुल आपकी तरह।

फिर मुर्गा, क्योंकि वह सुबह-सुबह बाँग देकर सबको जगाती है।

और मेढक तो बिलकुल पसंद नहीं है मुझे, क्योंकि वह दिन-रात बस टर्र-टर्र करता रहता है।

ओफ्फोह! कितनी आवाज करता है !

माँ ने आँचल से कहाँ, बेटा, मैं यही तुम्हें समझाना चाहती हूँ।

देखो, मुर्गा बीएस सुबह सही समय पर बोलता है, इसलिए सब उसकी आवाज ध्यान से सुनते हैं और जाग जाते हैं।

लेकिन मेढक हमेशा टर्र-टर्र करता रहता है, इसलिए सब उससे ऊब जाते है।

कोई उसकी बात नहीं सुनता, न ही कोई उसे पसंद करता है।

इसलिए बस उतना ही बोलना चाहिए जितना जरूरी हो। समझी!

आँचल समझ गई कि माँ उससे क्या कहना चाहती हैं।

 

7. मेहनत करो 

है इम्तिहाँ सर पर खड़ा मेहनत करो मेहनत करो

बाँधो कमर बैठे हो क्या मेहनत करो मेहनत करो

बे-शक पढ़ाई है सवा और वक़्त है थोड़ा रहा

है ऐसी मुश्किल बात क्या मेहनत करो मेहनत करो

शिकवे शिकायत जो कि थे तुम ने कहे हम ने सुने

जो कुछ हुआ अच्छा हुआ मेहनत करो मेहनत करो

मेहनत करो इनआ'म लो इनआ'म पर इकराम लो

जो चाहोगे मिल जाएगा मेहनत करो मेहनत करो

जो बैठ जाएँ हार कर कह दो उन्हें ललकार कर

हिम्मत का कूड़ा मार कर मेहनत करो मेहनत करो

तदबीरें सारी कर चुके बातों के दरिया बह चुके

बक बक से अब क्या फ़ाएदा मेहनत करो मेहनत करो

ये बीज अगर डालोगे तुम दिल से उसे पा लोगे तुम

देखोगे फिर इस का मज़ा मेहनत करो मेहनत करो

मेहनत जो की जी तोड़ कर हर शौक़ से मुँह मोड़ कर

कर दोगे दम में फ़ैसला मेहनत करो मेहनत करो

खेती हो या सौदागरी हो भीक हो या चाकरी

सब का सबक़ यकसाँ सुना मेहनत करो मेहनत करो

जिस दिन बड़े तुम हो गए दुनिया के धंदों में फँसे

पढ़ने की फिर फ़ुर्सत कुजा मेहनत करो मेहनत करो

बचपन रहा किस का भला अंजाम को सोचो ज़रा

ये तो कहो खाओगे क्या मेहनत करो मेहनत करो

 

8. हार नहीं मनो जब तक मंजिल नहीं मिल जाती 

स्वामी विवेकानंद, अथवा बालक नरेंद्रनाथ दत्त को, उनके माता-पिता ने काशी-स्थित वीरेश्वर महादेव की पूजा कर प्राप्त किया था. नरेंद्र के शैशव का एक दृश्य है कि तीन वर्ष की अवस्था में, वे खेल ही खेल में हाथ में चाकू ले कर, अपने घर के आंगन में उत्पात मचा रहे थे. ‘इसको मार दूं. उसको मार दूं.’ दो-दो नौकरानियां उनको पकड़ने का प्रयत्न कर रही थीं, और पकड़ नहीं पा रही थीं. अंतत: माता, भुवनेश्वरी देवी ने नौकरानियों को असमर्थ मान कर परे हटाया और पुत्र को बांह से पकड़ लिया. स्नानागार में ले जा कर उसके सिर पर लोटे से जल डाला और उच्चारण किया,’शिव.. शिव.’ बालक शांत हो गया. उत्पात का शमन हो गया. उस समय तक वे विचारक नहीं थे, साधक नहीं थे, संत नहीं थे, किंतु वे वीरेश्वर महादेव के भेजे हुए, आये थे. उस समय ही नहीं, आजीवन ही वे जब-तब आकाश की ओर देखते थे और उनके मुख से उच्चरित होता था,’शिव.. शिव.’ परिणामत: उनका मन शांत हो जाता था. पेरिस की सड़कों पर घूमते हुए, भीड़ और पाश्चात्य संस्कृति की भयावहता से परेशान हो जाते थे, तो जेब से शीशी निकाल कर गंगा जल की कुछ बूंदें पी लेते थे. उससे वे हिमालय की शांति और हहराती गंगा के प्रवाह का अनुभव करते थे. स्वामी विवेकानंद की मान्यता थी कि ज्ञान बाहर से नहीं आता. ज्ञान हमारे भीतर ही होता है. आजीवन उसी सुप्त ज्ञान का विकास होता है. इस प्रकार जन्म के समय नवजात शिशु के भीतर जो संस्कार होते हैं, वे ही उसके भावी व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं.

 

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